Wednesday 2 August 2017

बहना .. ओ बहना !!!!

"आज जन्मदिन है मेरी प्यारी दीदी का !!!!!! " दिन भर टाइम ही नहीं मिल पाया कुछ सोचने का, घर की जिम्मेदारियों के चलते। अभी खाली बैठी तो दीदी का ख्याल आने लगा ..,तो सोचा क्यों नहीं दोस्तों से भी यह थोड़ा सा बहनापा शेयर करूं !! यह बहनों का संसार भी कितना अलग होता है ना .? सोचते सोचते मैं तो न जाने कब यादों के सफ़र में निकल गई ....

बड़ी बहन और बड़ा भाई होना तो भगवान का तोहफा ही होता है  , hope  कि आप लोग इस सहमत होंगे,  घर पर केयर करने के लिए मां बाप के अलावा भी किसी को देता है भगवान... बाद में वही अनकहा केयरटेकर सहेली  या दोस्त बन जाते हैं... बड़े के रौब के साथ साथ सहेलियों सी हंसी-ठिठोली और इन सबसे बढ़कर ,बाहर की दुनिया में भी संरक्षण मिलना.... मैं तो वाकई इस मामले में खुद को भगवान जी की फेवरेट मानती hu, जो मुझे एक दीदी और भैया दोनों ही मिले और बिल्कुल वैसे ही जैसे मैंने ऊपर लिखा है 
मेरी दीदी बिल्कुल ऐसी ही है।  अपने दोनों छोटे भाई बहन के लिए बेहद पजेसिव !!!! बचपन में अगर हमें कोई कुछ कह भी देता था ,तो वह लड़ने पहुंच जाती थी उससे!  दिल से बिल्कुल साफ और निर्मल ..... हालांकि ऐसा नहीं कि हमारी कभी लड़ाई नहीं हुई.... खूब हुई ! और मुझे परेशान करने में तो दीदी को महारत हासिल थी ... ;)
मेरे 20वें जन्मदिन पर ,मेरी सहेली शेफाली के साथ मिलकर दिया बर्थडे सरप्राइज और उसके पीछे दीदी का मास्टर प्लान और शेफालि का execution.. मैं भूल ही नहीं पाती!!!! वह कॉलेज की बातों और परेशानियों की शेयरिंग... वह साथ में डांस करना... एक दूसरे को  रुलाते से हंसाना ..और हंसाते से रुला देना ....शादी के पहले की कितनी ही बातें होती हैं ना .. पर सारी बातें यहां लिखना असंभव है! 
 लेकिन अगर आप लोगों को मेरी यादें पढ़कर , अपनी बहन के साथ बिताए  कुछ पल ही याद आए हो ...तो प्लीज, मेरी दीदी के लिए मुस्कुराते हुए, जन्मदिन की एक शुभकामना जरुर टाइप करना...

 "खुश रहे तू सदा यह दुआ है मेरी प्यारी दीदी"

  Love you always......

Sunday 23 July 2017

उफ़ ये चायना मार्केट !!!!

Plz do comment if you like reading this ......

"चाहे कोई भी कंपनी हो इंसान हो या घर की व्यवस्था हो या फिर कोई भी देश हो हर चीज में आत्मविश्वास बना रहता है अर्थव्यवस्था से ! अगर हमारे घर की अर्थव्यवस्था यानी फाइनेंशियल कंडीशन अच्छी नहीं है तो हम निश्चित तौर पर खुद को कमतर फील करते हैं,  sudridh अर्थव्यवस्था से आवाज और आत्मविश्वास अपने आप ही मजबूत हो जाता है !
जी हां ,मैं बात को उसी ओर ले जाना चाह रही हूं, जहां की हवा आज के दौर में देश-विदेश ,मीडिया, सोशल मीडिया से लेकर आम आदमी तक में बहस का मुद्दा बनी हुई है ! चीन का बेखौफ और आत्मविश्वास से लबरेज भारत से संवाद ,या यूं कहें धमकियां ...पाकिस्तान के मंसूबे और इन दोनों के मेल से जो गुल खिल सकता है ,उसका अंदाजा अपने ही घर की पोल पटिया खोलने वाले देशभक्तों को भी बखूबी होगा !!
दोस्तों ,आज देश में दो गुट हैं ! एक ,जो थोड़ा सा भी देशभक्ति का जज्बा रखते हैं और चाइना प्रोडक्ट्स को ना खरीदने की अपील करता है ....इस बात से अनजान कि चाइना प्रोडक्ट उसके घर के हर कमरे, बाथरुम, किचन तक में घुसे हुए हैं ..फिर भी जज्बा तो है 

वही दूसरा वर्ग ,सिर्फ इस बात को उजागर करता है कि हमसब कुछ नहीं कर सकते, या भारत का कुछ नहीं हो सकता !चाइना मार्केट ने इस कदर इंडिया को कैप्चर किया हुआ है कि इसको इग्नोर करना नामुमकिन है... वगैरा-वगैरा.... यह वही संवेदनशील लोग हैं जिन्हें जो सिर्फ कमियां देखते हैं....यह ठीक उसी तरह है जैसे किसी दरिंदे की दरिंदगी का शिकार हुई मासूम को ही हमारे कुछ माननीय नेतागण नसीहतें देते नजर आते हैं अक्सर! 
पर जरा एक बार सोचिए ,(हालांकि बार-बार कुछ बेचारे लोग यह सोचने पर मजबूर  करवाते रहते हैं) कि अगर हमने कुछ नहीं किया तो चीन-पाकिस्तान मिलकर हमारा क्या हाल कर सकते हैं ?

चीन का बाजार आज सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में अपनी धाक जमाए हुए हैं ! यकीनन वहां के लोग बहुत मेहनती हैं ..इसके अलावा वह यकीन रखते हैं खुद पर ,खुद की इच्छा शक्ति पर और छा जाने पर ! आज अमेरिका भी जाएंगे तो आपको मेड इन चाइना का ही सामान मिलेगा और भारत का तो 95% मार्किट चीन के कब्जे में है !!!एक इंसान यह सोचेगा कि सिर्फ मेरे खरीदने ya ना खरीदने से क्या फर्क पड़ता है ?? 
तो फर्क पड़ता है भाई !!!    एक-एक जुड़ते गए तो पंचानवे हो गया ! 

जो लोग सरकार को  दोष देते हैं ..ki चीन से सामान लाना बंद करवाएं ...ऐसे लोगों को यही जवाब है कि इस मामले को वैश्विक परिप्रेक्ष्य में समझने की जरूरत है
 वैश्विक परिप्रेक्ष्य में संबंध बाजारी नीतियों को नजरअंदाज करना हमें मुसीबत में डाल सकता है ! इसे ऐसे समझें कि अगर आप किसी को सामान ला कर अपने देश में बेचने से रोक देंगे तो आपको भी कभी वहां जाकर व्यापार नहीं करने दिया जाएगा !!   भारत में भी निर्यात के अवसर खतरे में पड़ जाएंगे, इसका एक ही तरीका है ,चीनी सामानों की खपत बंद हो और अपने सामान का यही निर्माण किया जाए! जब खपत  ही नहीं होगी ,तो मांग अपने आप ही बंद हो जाएगी ...और मांग अपने आप ही बंद हो गई तो चीनी मार्केट अपने आप ही खत्म हो जाएगा.. लेकिन इसके लिए एकजुट होना पड़ेगा.

 दूसरे ,आजकल ऑनलाइन कितनी ही साइट है ,जो सामान और समाचार बेचकर पैसा कमा रही है.. अलीबाबा ,पेटीएम ,UC Browser और न जाने कितनी .....सब बंद करें !दूसरों को दोष ना दें !खुद अपने घर से ही शुरुआत करें!

  याद है पिछली दिवाली सब ने मिलकर चाइनीज पटाखों का बहिष्कार किया था तो 20% बाजारी बहिष्कार से चीन कैसे तिलमिला गया था!!! वही जरूरत आज फिर है ...अपने देश की सुरक्षा के लिए ....अपने सरहद के जवानों के लिए ...और खुद अपनी सेल्फ रिस्पेक्ट के लिए!!!! दूसरों को मजबूत बनाने से पहले खुद को मजबूत बनाना पड़ेगा तभी हमारी आवाज में भी मजबूती आ पाएगी!!!! "
  - saumya©


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Saumya


Friday 7 July 2017


बधाई हौसले को !! 

---------------"गर हो हौसला ,हर मंजिल आसान लगती है"----------------

4 जुलाई 2017 को बस्ती और खलीलाबाद का नाम इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज हो गया! क्रेडिट इसका जाता है ,एक ऐसी लड़की को ..जिसने यह मिथ तोड़ कर रख दिया की ऊंचाइयों को छूने के रास्ते, बड़े-बड़े शहरों में ही खुलते हैं....छोटे से शहर की बेटी भी नहीं बल्कि बहू के (क्योंकि हमारे समाज में बेटियां तो फिर भी कथित तौर पर स्वतंत्र मानी जाती हैं बनिस्पत बहू के )  सपनों ने वो उड़ान भरी थी की आज सारे देश की नजरें हैं उस पर....
इस गृहणी ने भारत में होने भारत में विवाहित महिलाओं की सौंदर्य प्रतियोगिता को जीतने का सपना देखा और उसे पूरा किया ...अगर आप इस प्रतियोगिता का कुछ अंश भी इंटरनेट पर देख पाएं तो आपको पता चलेगा की  इस ऊंचाई पर पहुंचने के लिए उसने कितनी चढ़ाई चढ़ी होगी.....राह इतनी आसान न थी जितना सुनने में लगता है.......

हमारे भारतीय समाज में शादी और बच्चे होना लड़की का होने के बाद लड़की का दूसरा जन्म माना जाता है l. * "जा सिमरन जा ,जी ले अपनी जिंदगी "यह कहने वाले ससुराल वाले कम ही होते हैं  ....खासकर बस्ती जैसी छोटी जगह के मद्देनजर देखा जाए तो ना के बराबर....

मैं सुप्रिया को पर्सनली तो नहीं जानती हूं , लेकिन मैं बस्ती और खलीलाबाद जैसी जगहों को अच्छी तरह जानती हूं ll अपनी बर्थप्लेस की originality से हर कोई वाकिफ होता है.... आज मेरी भी शादी हो चुकी है. बच्चे हैं ..इतने सालों में अपनी बस्ती को भी बड़ा और विकसित होते देखा है मैंने....
यह लड़की खलीलाबाद की है ......2011 की जनसंख्या गणना के अनुसार ,बस्ती की जनसंख्या ढाई लाख थी और खलीलाबाद की मात्र 50,000 
यह आंकड़े इसलिए बता रही हूं ताकि बस्ती-खलीलाबाद के नाम से नावाकिफ लोगों को अंदाजा लग जाए की खलीलाबाद और बस्ती में ही कितना डिफरेंस हैl  खलीलाबाद-बस्ती में शिक्षा के नाम पर.. गिनती के स्कूल.... ,कोशिश के नाम पर ..राजधानी लखनऊ या इलाहाबाद जाकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करना..... ,और नौकरी के अवसर के नाम पर ...चप्पलें ghiste रहना .....और हारकर उम्र दराज युवा बनकर कोई छोटा मोटा काम चला लेना ...
महत्वाकांक्षी लोगों को शहर से बाहर आना ही पड़ता है । कईयों के तो सपने ही दफन हो जाते हैं छोटे शहरों में....साधन ,अवसर और आर्थिक अभावों के कारण l ऐसा नहीं है कि सब का यही हाल है आज ऐसे छोटे और गुम शहरों के सैकड़ों लोग, बड़े शहरों /विदेशों में  राज भी कर रहे हैं  !....
पर ...यहां पर मैं बात कर रही हूं लड़कियों की ....उनकी हालत तो और भी  बदतर है l जहां सहेली के घर जाने के लिए भी उसका छोटा भाई साथ जाता हो ......ऐसे माहौल में लड़कियों को पढ़ते जाना, डिग्रियां बटोरने और शादी के सपने देखने के अलावा कोई और सपने देखने का हक नहीं होता.... 

ऐसे माहौल में पली-बढ़ी सुप्रिया का सपने देखना और उसकी ओर बढ़ने का प्रयास करना ही बहुत बड़ी बात है .....ऊपर से विजेता बन कर तो उसने सदियों के मिथ  को तोड़ कर रख दिया और अपने जैसी ना जाने कितनी लड़कियों की आशा की राह दिखा दी.....

बाहर निकल कर तो हर कोई अपनी लड़ाई लड़ लेता है.. लेकिन ....पुराने दरख्तों को उखाड़ना ....और फिर नए आयाम देना ..भी आसान नहीं...उसके लिए आशावादी सोच चाहिए l वरना संकीर्णता और छोटी सोच की दुहाई देकर, आंसू बहाते हुए ,खुद को बेचारा साबित कर कोई भी संतुष्ट रह सकता है ... हौसला चाहिए किसी भी अलग काम को अंजाम देने में.....
 बात एक सौंदर्य प्रतियोगिता को जीतने की नहीं ...शादी के 7 साल बाद प्रतियोगी बनने की भी नहीं... बात है, ऐसे परिवेश में खुद के सपनों को जिंदा रखने और उन्हें कामयाब बनाने की...... 
खलीलाबाद की बेटी और बस्ती की बहू को बधाई और हर  उस बहू और बेटी को भी बधाई .... जो ये सोचती हैं कि उन्हे भी सपने देखने का हक़ नहीं है....अब देखो सपने .... क्योंकि वे पूरे भी हो सकते हैं  ,प्रूफ़ हो गया अब  तो....सपने देखना ना छोड़ें..... सपने देखेंगे ही नहीं तो उनको साकार करने के लिए कदम कैसे बढ़ाएंगे.....

"गर हौसला हो क़ाबिज़
तूफान की लहरों में
डूबती कश्ती को भी
साहिल मिल ही जाएगा"

पढ़ने के लिये धन्यवाद 🙏
सौम्या

Wednesday 15 March 2017

भेड़चाल ..वूमेंस डे की

"बंद कर  डाले थे मैंने अपने whatsapp के सारे ऑटोमेटिक डाउनलोड ! अब ना ही कोई इमेज, ना वीडियो ,ना gif ...
 आज वूमेंस डे बीते  ठीक एक हफ्ता हो गया है सोचती हूं 8 मार्च को आए हुए सोशल मीडिया तूफान* के बारे में....
8 मार्च के आने से पहले से ही शुरू हुआ था स्त्री सशक्तिकरण के दिखावे का चलन, मुझे अंदर तक चिढ़ा डालता था|  हर पोस्ट में स्त्री का गुणगान गाया जा रहा था ...   उस की सहनशक्ति, ममता, शालीनता की दुहाई दी जा रही थी !  हजारों शॉर्ट फिल्में अचानक ही facebook , twitter और whatsapp पर अवतरित हो गई | बाढ़ सी आ गई ऐसी पोस्ट की !
और 8 मार्च बीतते ही सब अचानक खत्म.... whatsapp पर एक पोस्ट आई थी "अगर यह दिन महिला दिवस है तो क्या होता है रोज महिलाओं के लिए ?" इस बात का महिला दिवस मनाने वाली महिला ने जवाब दिया कि यह दिन कर्मठ ,स्नेही, महिलाओं को सम्मानित करने का है  |  
मुझे तो झल्लाहट होती रही कि दिनभर सारी महिलाएं एक दूसरे को मैसेज भेज भेज कर वुमंस डे विश करती रही, फालतू फॉर वर्ड्स का तामझाम | पर फर्क कुछ नहीं |  रोना तो वह भी रोती रही ,बट फिर भी हैप्पी वूमंस डे !
 कोई इस दिन बाहर लंच करके खुश रहा, कोई मूवी देख कर , तो कोइ गोलगप्पे खा कर ही  अपनी आजादी का जश्न मना कर खुश रहा  |  दिन भर यही सब..... और 9 तारीख को जैसे सोशल मीडिया पर यह तूफान थम सा गया! लेकिन रुकिए....... अभी बहुत से त्यौहार और फलाने डेज आने को है ....अब फिर से यही सब नए सिरे से शुरू  हो चुका है..... त्योहारों और उसके बाद तक त्योहारों और उसके महत्व  पर जोक्स  बनेंगे  और  क्लिक्स , शेयर और फॉरवर्ड  के खेल में कंपनियां  दीवाली मनाएंगी |
  आपको नहीं लगता कि आज के दौर में हर त्यौहार, हर रिश्ते , हर भगवान और हर चीज का बाजारीकरण हो चुका है ? दो दशक पहले हम ग्रीटिंग कार्ड्स के लिए कहते थे , आर्चीज,हॉलमार्क आदि कंपनीज पर रिश्तो के बाजारीकरण का इल्जाम लगता था | पर अब देखा जाए तो रिश्तो , तीज-त्यौहारों के बाजारीकरण की सारी सीमाएं टूट चुकी हैं | हर उस बात पर जोक बन जाते हैं , जो बेहद संजीदा मानी जाती थी |   पर आज ना  ही किसी बात का कोई महत्व है या ना कोई संजीदगी ! हम अपनी भावी पीढ़ी को किस ओर ले जा रहे हैं ????
  Pure commercialisation of everything ! 


  आज बच्चा भी पैसों और बाजार की के महत्व को समझने लगा है | भावनाओं का मतलब उसे बोल कर समझाना पड़ता है |

 अच्छा,जरा पता लगाएं कि क्या सारी औरतों के पतियों ने अपनी पत्नियों को वूमेंस डे पर विश किया?
और अगर किया भी होगा,तो औरत की महानता गिनाने और पूर्वज महिलाओं की दयनीय स्थिति पर तरस खाने के अलावा, कोई और सार्थक कदम उठाया ??? अपने अंदर बदलाव लाने का संकल्प मात्र ही किया क्या? 

मुझे मेरे कई पुरुष सहकर्मियों ने महिला दिवस की बधाई दी | सच कहूं , तो समझ में नहीं आया कि react कैसे करूं उनके सामने ! ऐसे लगा मानो मैं अबला से सबला बन चुकी हूं और इसी बात की मुझे बधाई दी जा रही है ...महसूस हुआ की मेरे समाज की कितनी ही औरतें अबला जीवन जी चुकी है और इस संघर्ष में साथ दे रहा है यह महिला दिवस |  लेकिन आज भी अगर आप अपने surroundings में देखें , तो हजारों अबलाए आसानी से दिख जाएंगी जो एक दूसरे को हैप्पी वूमेंस डे विश कर रही हैं .. सब कर रहे हैं इसलिए करना है ....बिना दिमाग लगाए ..वही भेड़चाल........बेबात.... बेमतलब....

 महिला दिवस मनाना ही है तो उन महिलाओं को सबसे पहले खुद का सम्मान करना सीखना होगा ..... औरत को औरत की ही दुश्मन बनने से रोकना होगा और......  बाकियों को अगर वाकई में महिला दिवस विश करना है तो महिलाओं से अपेक्षाएं छोड़िए ..सिर्फ उनसे ही आदर्श बनने , त्याग की मूर्ति बनने की कामना मत कीजिए..... एक पत्नी के सफल होने का सारा श्रेय ,उसके पति को ही ही मत दे डालिए, वह भी सिर्फ इसलिए कि उसने उसे इतनी आजादी दी | बल्कि उसकी सफलता को उसके परिश्रम को दीजिये |  मां के सारे त्याग को सिर्फ सलाम मत कीजिए... बल्कि उसके दुखों को , जिम्मेदारियों को कम करने का प्रयास करिए ...औरत के मल्टीटास्किंग होने का गुणगान मत गाइए,..... बल्कि खुद भी उसके साथ खड़े होकर उसका बोझ बांटिए |  उसे भी आलसी,.. लापरवाह,..मस्त.,.गैरजिम्मेदार,.. ठहाके लगाके हंसने वाली ,..,गलतियों से सीखने वाली ,.. बाहर की दुनिया देखकर महसूस करने वाली,..अपना खुद का निर्णय लेने वाली ...या फिर नौसिखिया ...ही बने रहने दीजिए ......उसको  औरत रुपी इंसान  ही बने रहने दीजिए ....भगवान की जगह बैठा कर उसका मानसिक शोषण बंद हो....  तभी इस महिला दिवस को मनाने की सार्थकता है  | 

वरना हर साल  फिर इधर का कॉपी-पेस्ट उधर और उधर का फॉरवर्ड मैसेज इधर भेजते रहें और इस इंटरनेट के बाजार में भेड़चाल का हिस्सा बनते रहें और  महिला दिवस का दिन मनाते रहें  | बस इतनी ही सार्थकता "8 मार्च वूमेंस डे" की रह जाएगी 



-सौम्या